Jan 102014
 

तेरी चौखट पे आना मेरा काम था

 

तेरी चौखट पे आना मेरा काम था, उम्र भर वो तो मुझ से किया न गया |
तेरी रहमत को क्यूँ कर मैं इल्ज़ाम दूँ, तुझ को बख़्शीश का मौका दिया न गया |

मैंने सोचा था दर पे तेरे आऊंगा, फिर वहाँ से मैं उठ कर नहीं जाऊँगा,
सोचते सोचते उम्र सारी गयी , एक सजदा भी मुझ से किया न गया |

तेरी रहमत बरसती रही रात दिन, तार तार अपना दामन रहा उम्र भर,
मैं समेटूँ कहाँ रहमतो को तेरी, चाक दामन तो मुझ से सिया न गया |

मैं हुआ हूँ तुम्हारे ही होने से जब, तुम में मुझ में रहा न फ़र्क कोई कब,
नाम तेरा मेरा अपना ही नाम था, नाम अपना ही मुझ से लिया न गया |

तेरी चौखट पे आना मेरा काम था, उम्र भर वो तो मुझ से किया न गया |

Print Friendly, PDF & Email

 Leave a Reply

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

(required)

(required)

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.